किसी और की कहानी
-मोहित डागरकुछ लोग हैं जो लम्बे समय से तैयारी में लगे हैं। सुखद परिणाम नहीं आ रहा। मन में आता है, क्या करें, छोड़ दें! कुछ और कर ले! क्या करें!
तो एक प्रसंग है, छोटा-सा भावुक सा....!!!!!
बहुत लम्बे संघर्ष के बाद एक मित्र का चयन आईएएस में हुआ था। और ऐसे समय हुआ था जब उन्हें लगने लगा था कि घर परिवार और उनके अब सारे संसाधन खत्म होने की कगार पर हैं। चयन होने के बाद बहुत सारे कोचिंग वाले बुलाते हैं, स्टूडेंट्स के साथ इंटरएक्सन के लिए। उन्हें भी एक ने बुलाया था।
स्टूडेंट्स में से एक ने सवाल पूछा, 'सर! आप इतने लम्बे समय से तैयारी कर रहे हैं और अभी तक टिके रहे अपनी तमाम असफलताओं के बावजूद, तो सर वो कौन सी बात है जो आपको इतना दिन के बाद भी प्रेरित करती रही।'
थोड़ा रुककर दिया लेकिन जवाब बहुत भावुक-सा था, "मैं एक खराब मिसाल नहीं बनना चाहता था। एक गांव से आया था तैयारी करने। मेरे गांव से कभी कोई आईएएस नहीं बना था.... और मेरे गाँव के साथ आसपास गाँव के लोग भी जानते थे कि मैं तैयारी करता हूँ। मैं सोचता था, गर नहीं बना और लौट गया तो लोगों पर क्या असर होगा। मेरा तो जो होगा सो होगा लेकिन आगे जब भी कोई बच्चा इलाहबाद से दिल्ली जाकर तैयारी करना चाहेगा, मना करने वाले मेरी मिसाल देंगे। नहीं हुआ लौट आया। तुम क्या जाओगे बहुत कठिन है। बीएड, बीटीसी कर लो, ये कर लो, वो कर लो तमाम बातें। तो मेरा जीवन एक बुरा उदहारण बन कर रह जायेगा। यह बात मुझे रोके रखती थी और मैं अपनी तमाम असफलताओं के बावजूद आगली बार सफल होने के लिए लगा रहता था.....!!!!!"
कहानी किसी और की है परंतु अगर....
-मोहित डागर की फेसबुक वॉल से साभार
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