Wednesday, September 20, 2023

जीवन एक संघर्ष

गिद्ध की प्रजाति का एक पक्षी है, नाम भूल रहा हूं। वह अंडे देने के लिए किसी ऊंचे पर्वत की चोटी पर चला जाता है। जोड़ा वहीं अंडे देता है, मादा अंडों को सेती है और एक दिन अंडा तोड़ कर बच्चे बाहर निकलते हैं। उसके कुछ दिन बाद जब बच्चे घोंसले से निकलना शुरू करते हैं तो नीचे गिर पड़ते हैं। कुछ दिनों के ये बच्चे जब  हजारों फीट की ऊंचाई से गिरते हैं, तब नर-मादा इस समय सिवाय चुपचाप देखते रहने के और कुछ नहीं कर सकते, वे बस देखते रहते हैं।
बच्चे पत्थरों से टकराते हुए गिरते हैं। कुछ ऊपर ही टकरा कर मर जाते हैं, कुछ नीचे गिर कर मर जाते हैं। उन्हीं में से कुछ होते हैं जो एकदो बार टकराने के बाद पंखों पर जोर लगाते हैं और नीचे पहुंचने के पहले पंख फडफड़ा कर स्वयं को रोक लेते हैं। बस वे ही बच जाते हैं। बचने वालों की संख्या दस में से अधिकतम दो ही होती है।
अब आप उस पक्षी के जीवन का संघर्ष देखिये! जन्म लेने के बाद उनके दस में से आठ बच्चे उनके सामने दुर्घटना का शिकार हो कर मर जाते हैं, पर उनकी प्रजाति बीस प्रतिशत जीवन दर के बावजूद करोड़ों वर्षों से जी रही है। संघर्ष इसको कहते हैं।
एक और मजेदार उदाहरण है। जंगल का राजा कहे जाने वाला शेर शिकार के लिए किए गए अपने 75% आक्रमणों में असफल हो जाता है। मतलब वह 100 में से 75 बार फेल होता है। अब आप इससे अपने जीवन की तुलना कीजिए, क्या हम 75% फेल्योर झेल पाते हैं? नहीं... इतनी असफलता तो मनुष्य को अवसाद में धकेल देती है। पर शेर अवसाद में नहीं जाता है। वह 25% माक्र्स के साथ ही जंगल का राजा है।
अब इसी घटना को दूसरे एंगल से देखिये! शेर अपने 75% आक्रमणों में असफल हो जाता है... इसका सीधा सा अर्थ है कि हिरण 75% हमलों में खुद को बचा ले जाते हैं। जंगल का सबसे मासूम पशु हिरण शेर जैसे बर्बर और प्रबल शत्रु को बार-बार पराजित करता है और तभी लाखों वर्षों से जी रहा है। उसका शत्रु केवल शेर ही नहीं है, बल्कि बाघ, चीता, तेंदुआ आदि हिंसक पशुओं के अलावा मनुष्य भी उसका शत्रु है और सब उसे मारना ही चाहते हैं। फिर भी वह बना हुआ है... कैसे?
वह जी रहा है, क्योंकि वह जीना चाहता है। हिरणों का झुंड रोज ही अपने सामने अपने कुछ साथियों को मार दिए जाते देखते हैं, पर हार नहीं मानते। वे दुख भरी कविताएं नहीं लिखते, हिरणवाद का रोना नहीं रोते। वे अवसाद में नहीं जाते, पर लडऩा नहीं छोड़ते। उन्हें पूरे जीवन में एक क्षण के लिए भी मनुष्य की तरह चादर तान कर सोने का सौभाग्य नहीं मिलता, बल्कि वे हर क्षण मृत्यु से संघर्ष करते हैं। यह संघर्ष ही उनकी रक्षा कर रहा है।
जंगल में स्वतंत्र जी रहे हर पशु का जीवन आज के मनुष्य से हजार गुना कठिन और संघर्षपूर्ण है। मनुष्य के सामने बस अधिक पैसा कमाने का संघर्ष है, परन्तु अन्य जीव-जन्तु जीवित रहने का संघर्ष करते हैं। फिर भी वे मस्त जी रहे होते हैं और हममें से अधिकांश अपनी स्थिति से असंतुष्ट हो कर रो रहे हैं।
अच्छी खासी स्थिति में जी रहा व्यक्ति अपने शानदार कमरे में बैठ कर एक-दूसरे से जलन व द्वेष का भाव रखता है। हम समझते हैं कि यही संघर्ष है। वे समझ ही नहीं पाते कि यह संघर्ष नहीं, अवसाद है। मनुष्य को अभी पशुओं से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है।

-GKnews Team

Sunday, January 1, 2023

संकल्पों को दोहराओ... लेकिन पूरा करने के लिए

लो एक और साल शुरू हो गया... हम फिर से अपने संकल्प दोहराएंगे। और गुजरते वक्त के साथ उन संकल्पों को छोड़ देंगे या इतनी ढील दे देंगे कि वे अपने आप ही हमें छोडऩे की कगार पर पहुंच जाएंगे। आखिर जब संकल्प ले ही लिया है तो फिर पूरा क्यों नहीं करते.... क्यों फंस जाते हैं इस दुनियावी जाल में। जब तय किया है कि फलां एग्जाम को फतेह करना है तो उस एग्जाम की तारीख चाहे एक महीने बाद हो या एक साल बाद... उसे क्रैक करने करने के लिए जुटने में संकोच या ढिलाई क्यों????
पढऩे के अनेक बहाने जुटाएंगे, लेकिन उन संसाधनों तक पहुंचने के लिए थोड़ा भी प्रयास नहीं करते जो हमें हमारे संकल्प तक पहुंचाने में सहायक सिद्ध होते हैं। क्या बहाना लगाते हैं... टाइम नहीं मिला, किताब नहीं मिली, आज सर्दी ज्यादा है, आज गर्मी जोरों पर है... या फिर 'मूड' नहीं है....
छोड़ो ये सब... आखिर जिन माता-पिता ने हमें पढ़ाने के लिए इतना कुछ किया है... अब जब वे इस उम्मीद में हैं कि हम हमारे लक्ष्य को क्रैक करेंगे और उनके सपनों को पूरा करेंगे तो हम बहाना मार रहे हैं। वो भी ऐसा जिसे सुनकर सामने वाला मन में हंसता होगा।
चलो उठो मेरे प्यारे दोस्त... कुछ करते हैं... ऐसा जो हम आज संकल्प ले रहे हैं, उसे पूरा करने में सहायक हो। तय करो कि जो भी वक्त मिले, जो भी संसाधन मिले उसका उपयोग अपने लक्ष्य को पूरा करने में लगा देंगे।
किताबों की धूल झाड़ लो... अनावश्यक एप्स को अपने मोबाइल से हटा लो। जो लक्ष्य की ओर से ले जाए.... तुम्हारे संकल्प को पूरा करे, अपने कमरे में... अपने मोबाइल में वही रखो। ऐसा नहीं है कि तुम्हें समय नहीं मिलता... बस में, ट्रेन में सफर करते-करते क्यों गेम खेलने लगते हो... इसकी बजाय ऑनलाइन स्टडी के इतने टूल हैं, किसी का भी उपयोग करो... कमरे में पड़े-पड़े छत को निहारने या टीवी का रिमोट दबाना बंद कर दो... सीधे किताब उठाओ और पढ़ो।
जो भी वक्त मिला है... जैसी भी परिस्थिति है... रुकना मत। नहीं तो पिछले साल की तरह इस बार भी वक्त निकल जाएगा और 2024...2025...2026... ऐसे ही निकलते जाएंगे। आखिर में वह साल भी आएगा, जब फॉर्म भरते हुए 'तुम्हारी उम्र निकल गई' जैसा वाक्य सुनने को मिलेगा।
तो मेरे दोस्त संकल्पों को दोहराओ... लेकिन पूरा करने के लिए।

-GKnews Team

Saturday, June 11, 2022

बस लगे रहिये... पढ़ते रहिये...

कहते हैं कि IAS/PCS बनने के लिए रोज 18 घंटे पढऩा जरुरी है, तब जाकर कोई IAS/PCS बनता है।
चलो 18 घंटे न सही.... अपने आप से पूछिए कि क्या आप 8 घंटे रोज अपनी पढ़ाई के लिए निकाल सकते हैं?
जो लोग job या business में व्यस्त नहीं उनके लिए 8 घंटे रोज अपने लक्ष्य को समर्पित करना मुश्किल नहीं है। आपके पास 24 घंटे होते हैं एक दिन में.... इन 24 घंटों को 8+8+8 में विभाजित कर लीजिए। 8 घंटा सोना भी जरुरी है। उसके बाद बचे 16 घंटे.... 8 घंटे आप अगर अपनी पढ़ाई को देते हैं तो बाकी के रोज मर्रा के क्रिया-कलाप जैसे नहाना-धोना, खाना-पीना, टीवी देखना समाचार-मनोरंजन watsapp, facebook और कोई काम जैसे घर में सहयोग इत्यादि के लिए आपके पास 8 घंटे बचे जो पर्याप्त हैं।
तो अब आप खुद check कीजिये कि आपका समय कहाँ जाता है, सबसे अच्छा उपाय है कि डायरी रखें जिसमें अपने 24 घंटे का हिसाब रखा जाए। 8 घंटे सोने के निकाल दीजिए, बाकी 16 घंटों का एक-एक मिनट का हिसाब होना चाहिए..... हर घंटे का लिखते जाइये कि कहाँ व्यतीत हुआ। सोते वक्त उसको देखिए कि कितना समय व्यर्थ हुआ, अगले दिन आपको खुद याद रहेगा कि क्या करना है और क्या नहीं.... कौन सा कार्य आपको आपकी मंजिल के समीप ले जा रहा है और कौन सा दूर.....?
इस अभ्यास में थोड़ा धैर्य रखना पड़ेगा, धीर-धीरे आपको डायरी में नोट करने की आदत हो जायेगी और आप अपना समय बर्बाद होने से बचाने में सफल होने लगेंगे।
और यदि आप पढ़ाई के 8 घंटे को बढ़ाकर 12 घंटे तक पहुंचाने में सफल होते हैं तो आपको अंतिम रूप से परीक्षा में सफल होने से कोई नही रोक सकता। बशर्ते की 12 घंटा पढ़ाई मतलब सिर्फ  पढ़ाई....
नींद के साथ समझौता न करें।
अगर आप ऐसा कर सकते हैं तो आपकी जीत निश्चित है।

बस लगे रहिये... पढ़ते रहिये... सफलता की राह पर आगे बढ़ते रहिये...

Tuesday, May 17, 2022

कितना सुंदर होता है, UPSC में फेल हो जाना !

एक कोरा (Quora) यूजर हैं, अकंद सितरा।
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UPSC दिए, क्लियर नहीं हुआ। फिर से दिए, फिर नहीं हुआ. लेकिन रोए नहीं कतई. कोरा पर एक सवाल आया. कि IAS अफसर बनने का सफ़र कितना खुशनुमा होता है? उसका जवाब दिया अकंद ने. लेकिन IAS बनने नहीं, न बनने के बारे में. ये एक खुला ख़त है, उन सभी के लिए जो UPSC के लिए पूरी मेहनत करते हैं. बार-बार ट्राय कर भी फेल हो जाते हैं. बल्कि सिर्फ उनके लिए ही नहीं, उन सभी के लिए जो किसी न किसी एग्जाम में फेल हुए हैं.
अकंद ने ये पोस्ट कोरा पर अंग्रेजी में लिखी थी.
मुझे अपना छोटा सा इतिहास देने की इजाजत दें.
सिविल सर्विसेज 2013- इंटरव्यू फेल
सिविल सर्विसेज 2015- मेन्स फेल
सिविल सर्विसेज 2015- प्रीलिम्स फेल
RBI मैनेजर पोस्ट 2015- इंटरव्यू फेल
SSC CGL 2015- टायर 2 फेल
हर साल, मैं किसी न किसी एग्जाम के फाइनल राउंड तक पहुंचता हूं और फिर बाहर हो जाता हूं. फाइनल लिस्ट में हमेशा कुछ नंबरों से रह गया, हर बार.
इतना करीब. फिर भी इतना दूर.
तीन साल की पढ़ाई. क्या मैंने अपना समय बर्बाद किया? कैसा रहा ये सफ़र? क्या मैं खुश हूं? मेरी एक सिंपल सी जिंदगी में ऐसे बहुत से सवाल हैं.
ख़ुशी असल में होती क्या है? अलग-अलग समय पर इसकी परिभाषाएं बदलती रहती हैं.
हर साल, 10 लाख लोग सिविल सर्विस एग्जाम के लिए अप्लाई करते हैं. उनमें से कितने लोग असल में खुश हैं?
हर साल 5 लाख से ज्यादा लोग प्रीलिम्स नहीं दे पाते हैं. या तो वो भूल जाते हैं. या काम और परिवार की वजह से एग्जाम देने नहीं जा पाते हैं. उन्होंने अप्लाई किया है, तो क्वालीफाई करने की चाहत तो होगी ही न. और ये बात कि वो एग्जाम दे ही नहीं पाए हैं, उन्हें उदास तो करती ही होगी.
4 लाख 85 हजार से ज्यादा लोग प्रीलिम्स क्लियर नहीं कर पाते. कुछ पढ़कर पेपर देते हैं. कुछ टाइम पास के लिए. लेकिन न सेलेक्ट होने पर खुश तो नहीं ही होते हैं न.
जो 15 हजार लोग प्री क्लियर कर मेन्स का एग्जाम देते हैं, उसमें से 12 हजार बाहर हो जाते हैं. 5 दिन लगाकर 9 कठिन पेपर देते हैं, साल भर मेहनत से पढ़ाई करने के बाद. मेन्स न क्लियर कर पाने के बाद वो तो बहुत दुखी होते हैं.
जो 3 हजार इंटरव्यू देते हैं, उनमें से 2 हजार शॉर्टलिस्ट नहीं होते. वो बिखर जाते हैं. कुछ नंबरों से रह जाते हैं. और उनका करियर एक साल रिवर्स हो जाता है.
आखिरी हजार लोगों में से 900 खुश नहीं होते. क्योंकि अपने मन की पोस्ट नहीं मिलती. ITS, IIS, IRTS में मेरे कई दोस्त हैं, जिनका मोहभंग हो चुका है. क्योंकि वो जिन पोस्ट्स पर हैं, उनका चार्म नहीं है. चार्म तो बस IAS, IPS और IFS का है. बाकी सब तो नॉर्मल सरकारी नौकरी होती हैं. तो, क्या वो खुश हैं? अगर उन्हें एक नंबर और मिल जाता, वो IAS बन सकते थे. ये बात उनकी आत्मा को कांटे की तरह चुभती रहेगी, हमेशा. इतना पास, फिर भी इतना दूर.
टॉप 100 में से, आखिरी के 30 लोग नाखुश होते हैं. क्योंकि उनको अपनी चॉइस के कैडर नहीं मिलते. जिसे मुंबई चाहिए, उसे नागालैंड मिल जाता है. ऐसी जगह भेज दिया जाता है जहां की बोली, भाषा, कल्चर, कुछ भी उन्हें समझ नहीं आता. अगर एक नंबर ज्यादा आया होता तो वो अपने स्टेट में होते. या अपने शहर में. सिर्फ एक नंबर. इतना पास, फिर भी इतना दूर.
तो 10 लाख लोगों में 9 हजार, 99 लाख, 950 लोग नाखुश हैं. अलग, अलग कारणों से.
क्या हमें हमारी मानसिक स्थिति उन चीजों के हिसाब से तय करनी चाहिए, जो हमारे वश में नहीं हैं?
क्या हमारी ख़ुशी मात्र किसी एग्जाम में पास होने पर निर्भर रहती है?
क्या हमें उन चीजों के बारे में दुखी होना चाहिए, जो बदल नहीं सकतीं?
मैं नहीं जानता. ये आप तय करें.
मैं बताता हूं, मुझे कैसा लगता है.
बिना किसी इनकम के, मम्मी-पापा के पैसों पर एक उदास कमरे में रहते हुए, खुद को 3 साल घिसने के बावजूद कुछ भी न कर पाने के बाद भी मुझे संतोष है.
हां, मुझे खुद से संतोष है. क्योंकि इस सफ़र में मैं बहुत बदल गया हूं. मेरे अनुभवों ने मुझे बदल दिया है, मेरी बेहतरी के लिए.
2013 में जब मैं कॉलेज में था, एक बेवकूफ, इम्मैच्योर लड़का था. क्लास का जोकर था. मुझसे लोग चिढ़ जाते थे और कभी सीरियसली नहीं लेते थे. पूरे कॉलेज में ,मेरा मजाक उड़ता था.
और उसके बाद, मैंने एग्जाम की तैयारी शुरू की.
सिविल सर्विस के लिए मुझे बहुत कुछ पढ़ना पड़ा: देश-दुनिया की हिस्ट्री, जॉग्रफी, पॉलिटी, इकोनॉमिक्स, एनवायरनमेंट, एथिक्स, पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, सोशियोलॉजी, करेंट अफेयर्स, साइंस और इस आसमान के नीचे की हर चीज.
इन तीन सालों में, आप कह सकते हैं, मैंने इन सभी सब्जेक्ट्स में MA कर लिया था. 10 अलग-अलग सब्जेक्ट्स में MA.
SSC के लिए मैंने मैथ्स, इंग्लिश, रीजनिंग और लॉजिक पढ़ा. वो भी हाई लेवल का. 3 BA तो कर ही लिए होंगे.
RBI के लिए बैंकिंग, फाइनेंस, इंश्योरंस, और पैसो के बारे में पढ़ा. सभी RBI रिपोर्ट्स को गहराई से पढ़ा.
3 साल के बाद में एक जोकर, बेवकूफ लड़के से एक मैच्योर, समझदार आदमी बन गया था. जब दोस्तों से मिलता, वो शॉक हो जाते कि कोई इतना कैसे बदल सकता है. किसी भी टॉपिक पर कितनी भी देर बात कर सकता था. डिबेट करता, चीजों पर अपनी राय रखता. जब बात करता, मैं स्मार्ट लगता. अब वो मेरी जेन्युइन *रेस्पेक्ट* करते थे.
मुझे और क्या चाहिए था?
इतने सारे एक्साम्स को शुक्रिया, कि मैंने एक एग्जाम पास कर लिया. होम मिनिस्ट्री में अब मेरी एक अच्छी नौकरी है.
इस सफ़र के अंत में, मेरे पास एक 60 हजार रुपए प्रति महीने की नौकरी है.
इस सफ़र के अंत में, मुझे मेरा प्यार मिल गया है, जिसने मेरे सबसे बुरे समय में मेरा साथ दिया.
इस सफ़र के अंत में, मुझे इज्जत मिली है. दोस्तों, मम्मी-पापा, परिवार, रिश्तेदार, और कोरा पर.
इस सफ़र के अंत में, मैं ज्यादा समझदार, ज्ञानी और जानकार हूं.
इस सफ़र के अंत में, मैंने सीख लिया है कि जिंदगी अच्छी या बुरी नहीं, बस जिंदगी है.
जब-जब मैं कोई एग्जाम पास नहीं कर पाया, मुझे लगता था मैं गिर गया हूं. दुख और डिप्रेशन से घिर जाता था. कुंठित हो गया था. फिर से फेल हुआ. फिर बार-बार फेल हुआ. और ये समझ गया कि गिरना कुछ नहीं होता.
जो चीजें मेरे वश में नहीं है, उन पर फ्रस्ट्रेट होने का कोई तुक नहीं है. किस्मत को कोसने का कोई फायदा नहीं है. मैंने सीखा है कि जो मैं हूं, मुझे उसके बारे में खुश रहना चाहिए. और ये समझने के बाद मैं सुकून में हूं, पहले से कहीं बेहतर कर रहा हूं.
क्या मैं इन सब एग्जाम्स में फेल हुआ हूं? हां.
क्या मैं जिंदगी में फेल हुआ हूं? नहीं, बिलकुल नहीं.
मैं अपने जीवन से प्यार करता हूं. सफल नहीं हुआ तो क्या, मैं खुश हूं.
मेरे पास वो सब नहीं, जो मैं चाहता था. पर वो सब है, जिसकी मुझे जरूरत थी.
और मुझे क्या चाहिए?
तो हां, ये एक खुशनुमा सफ़र था. एक अच्छा अनुभव! लेकिन क्या ये अंत है? नहीं, मैंने अभी बस शुरुआत की है।

साभार : GS Power
 
 

असफलताओं को पीछे छोड़ पीसीएस अधिकार बने अरविंद

जीवन के लिए लक्ष्य तय किया, उसमें आने वाले बाधाओं को पार कर एक युवक जो इंटरमीडिएट की परीक्षा में फेल हुआ, वह आज उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपी-पीसीएस लोअर) की परीक्षा पास कर श्रम प्रवर्तन अधिकारी बन गया है।
जी हां, सिर्फ मंजिल पर नजर रखने वाले ही ऐसा कर दिखाते हैं। हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के पौड़ी जिले के नैनीडाडा ब्लॉक की ग्राम पंचायत बड़ेथ निवासी अरविंद सिंह नेगी की। अरविंद सिंह ने वर्ष 2003 में हाईस्कूल की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में पास की। वर्ष 2005 में इंटरमीडिएट की परीक्षा दी, किंतु असफल रहे। इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और फिर से इंटरमीडिएट की परीक्षा दी और प्रथम श्रेणी प्राप्त की।
पिता मेरठ में चाय की दुकान लगाते हैं। उन्होंने चाय की दुकान पर काम करते हुए ही बीकॉम व एमकॉम की डिग्री भी हासिल की। व्यापारियों के बहीखाते भी संभाले। साथ ही पिता का भी हाथ बंटाते रहे। वर्ष 2013 में पहली बार पीसीएस की परीक्षा दी, लेकिन चूक गए। वर्ष 2015 में उन्होंने फिर उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपी-पीसीएस लोअर) की परीक्षा दी। इस परीक्षा का परिणाम हाल ही में घोषित हुआ। इसमें अरविंद का चयन श्रम प्रवर्तन अधिकारी के पद पर हुआ है।
असफलाओं से ना घबराकर अपनी मंजिल पर निगाहें रखने वाले अरविंद को अब वर्ष 2016 में दी गई पीसीएस (अपर) परीक्षा के परिणामों का इंतजार है। जबकि, वर्ष 2017 पीसीएस का मेन एग्जाम देना भी बाकी है।
असफलाओं की चोटें सहते हुए भी अरविंद ने मंजिल की ओर कदम बढ़ाना नहीं रोका।


किसी ने विद्वान ने बिल्कुल ठीक कहा है-
मनुष्य का मन कछुए की भांति होना चाहिए, जो बाहर की चोटें सहते हुए भी अपने लक्ष्य को नहीं छोड़ता और धीरे-धीरे मंजिल पर पहुंच जाता है।

*6 मई, 2018 को समाचार पत्रों में प्रकाशित जानकारी पर आधारित

Sunday, July 25, 2021

कैसे करें आईएएस की तैयारी

आईएएस की परीक्षा को लेकर अभ्यर्थियों के मन में अनेक प्रश्न उठते रहते हैं, इन्हीं में से कुछ प्रश्नों के उत्तर बता रहे हैं विकास सिंह


प्रश्न- आईएएस में कितनी परीक्षाएं होती हैं?
उतर- इस परीक्षा में तीन चरण होते हैं। प्रारंभिक परीक्षा में दो पेपर होते हैं- एक GS और एक CSAT। प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् मुख्य परीक्षा होती है जिसमें 9 पेपर होते हैं। इसमें 2 पेपर भाषा के, 4 पेपर सामान्य अध्ययन के, 2 पेपर एक वैकल्पिक विषय के और 1 पेपर निबंध का होता है। मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् इंटरव्यू या साक्षात्कार के लिए बुलाया जाता है।

प्रश्न- तैयारी की शुरुआत कब करें?
उत्तर- सिविल सेवा की तैयारी आप ग्रेजुएशन के अंतिम वर्ष में शुरू कर सकते हैं। अगर किसी कारण से विलम्ब हो गया है तो कोई बात नहीं। आप कभी भी तैयारी शुरू कर सकते हैं, बस आप दृढ़ संकल्पित और अपना सर्वोत्तम देने के लिए तत्पर हों।

प्रश्न- किस माध्यम का चुनाव करें?
उत्तर- माध्यम वही चुने जिसमें आप अपना सर्वोत्तम दे सकें। लोगों की दकियानुसी बातों पर न जाएं। हर वर्ष हिंदी माध्यम के भी अभ्यर्थी सफल होते हैं। अत: हिंदी में लेखन शैली को लगातार बेहतर बनाने का प्रयास करें।

प्रश्न- क्या आईएएस और आईपीएस के लिए अलग अलग परीक्षाएं होती हैं?
उत्तर- नहीं। संघ लोक सेवा आयोग वर्ष में एक बार कॉमन परीक्षा आयोजित करता है जिसमें सफलता के बाद प्राप्त रैंकों के आधार पर आपको IAS, IPS, IFS और IRS जैसी सेवाओं में भेजा जाता है।

प्रश्न- क्या कोचिंग लेना अनिवार्य है?
उत्तर- बिल्कुल नहीं। माना कोचिंग आपका काम आसान करती है लेकिन किसी भी शास्त्र में यह नहीं लिखा कि बिना कोचिंग के अभ्यर्थी सफल नहीं होते। हर वर्ष का रिजल्ट बताता है कि 100+ अभ्यर्थी बिना कोचिंग के सफल हो रहे हैं।

प्रश्न- तैयारी के लिए कितना समय पर्याप्त है?
उत्तर - अगर आप अभी शुरुआत करना चाहते हैं तो आपकी तैयारी के लिए 18 माह पर्याप्त होंगे। शुरुआत के 3 माह में NCERT को ठीक से तैयार कर लीजिये। इसके बाद 12 माह आपकी विषयानुसार तैयारी के लिए। और अंतिम 3 माह मॉक टेस्ट और रिवीजन के लिए रखिये।

प्रश्न- ऑप्शनल पेपर का चुनाव कैसे करें?
उत्तर- बहुत से छात्रों की यह दुविधा होती है कि वैकल्पिक पेपर कौन सा चुने? हमारी उनको विशेष सलाह है कि वैकल्पिक पेपर के चुनाव के समय आप सिर्फ अपनी रुचि का ध्यान रखिये। किसी की सलाह का नहीं। अक्सर छात्र सफल अभ्यर्थियों के इंटरव्यू पढ़कर उनके विषय को ही अपना वैकल्पिक बना लेते हैं। यह घातक हो सकता है क्योंकि जरुरी नहीं कि जिस विषय में वे सुलभ हो उसे आप भी उसी तरह अपना पाएं। सबकी अपनी अलग-अलग रुचि होती है, किसी को भूगोल बड़ी आसान लगती है और बहुत से ऐसे भी हैं जिन्हें भूगोल से बड़ा डर लगता है। हर ऑप्शनल पेपर से अभ्यर्थी सफल हुए हैं। और हम खुद यह बिल्कुल नहीं मानते कि कोई विषय कम-ज्यादा स्कोरिंग होता है। यह आपकी लेखन शैली पर निर्भर करता है कि आप कितनी हद तक निरीक्षक को प्रभावित कर पाते हैं।

विकास सिंह की फेसबुक वॉल से साभार

Sunday, June 27, 2021

हर आईएएस टॉपर में होते हैं ये सामान्य गुण

-अंजलि देशमुख

आईएएस टॉपर्स को हमारे समाज में आदर्श माना जाता है क्योंकि उन्होंने देश की सबसे मुश्किल परीक्षा में सफलता पाई है। आईएएस टॉपर दूसरे क्षेत्र के टॉपर्स की तरह ही पहले एक अच्छा छात्र बनता है और फिर एक टॉपर बन पाता है। इन व्यक्तियों के गुणों का विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है।
अंजलि देशमुख ने इस लेख के माध्यम से उन 8 अद्वितीय गुणों पर प्रकाश डाला है, जो आईएएस टॉपर्स में आम हैं।

1. अनुशासन और इच्छा शक्ति

सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण अनुशासन जो कि लंबी अवधि में सफलता प्राप्त करने के लिए सर्वोत्तम गुण है। किसी भी अन्य निष्ठावान छात्र जैसे आईएएस टॉपर्स अपने अध्ययन के दौरान समय और ऊर्जा के महत्व को समझते हैं इसलिए वे अपने अध्ययन समय सारणी तथा अन्य दैनिक क्रिया में वक्त बिताने के बारे में बेहद अनुशासित होते हैं। अनुशासन का यह अर्थ है कि इच्छा शक्ति से जीवन के हर मोड़ में सफलता प्राप्त होगी और यह अनुशासन की शुरुआत एक उचित अध्ययन टाइम-टेबल को बनाए रखने से ही संभव हो सकता है। इच्छा-शक्ति की ही आवश्यकता केवल लंबे समय तक अभ्यास करने के लिए ही नहीं होती है बल्कि जब उम्मीदवार जीवन में हताश हो तो यही इच्छा-शक्ति अभ्यास को फिर से शुरू करने की एक नई ऊर्जा प्रदान करता है।

2. समर्पण और संगतता

आईएएस टॉपर और असफल आईएएस उम्मीदवार के बीच बुनियादी अंतर समर्पण और निरंतरता का है जो अभ्यास के साथ आता है। नई चीजें सीखने के लिए समर्पित होने और सीखने के तरीके में लगातार सुधार लाने के लिए एक कला की आवश्यकता है जो आईएएस उम्मीदवारों द्वारा अध्ययन के लिए एक सख्त टाइम-टेबल के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। आईएएस में टॉप करने वाले छात्रों में अध्ययन की नियमितता में स्थिरता के महत्व का एहसास होता है और हर दिन संशोधन करने के लिए समय अवश्य निकालते हैं।

3. कभी हार ना मानने का रवैया:

आईएएस टॉपरों के पास कभी हार ना मानने का रवैया होता है जो उन्हें आईएएस परीक्षा की पूरी प्रक्रिया में प्रेरित करता रहता है। जब किसी व्यक्ति में कभी-कभी हार ना मानने का रवैया नहीं होता है तब वह आसानी से हार मान लेता है और ऐसी परिस्थिति आईएएस परीक्षा की तैयारी के दौरान बहुत घातक सिद्ध हो सकता है। आईएएस उम्मीदवारों को इस तरह के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रूप से ढल जाना चाहिए क्योंकि सिविल सर्विस सभी के लिए जीवन परिवर्तक हैं और इससे उन्हें आईएएस परीक्षा से जुड़े जोखिमों का एहसास करने में मदद मिलेगी।

4. चिंतनशील सोच

सिविल सर्विस के लिए अध्ययन की प्रक्रिया के दौरान आईएएस टॉपरों की एक चिंतनशील सोच विकसित होती है जो उन्हें समस्या की स्थिति में आगे बढऩे की कल्पना करने में मदद करती है। विश्लेषणात्मक तर्क का कौशल भी आईएएस परीक्षा देने के दौरान कुछ अलग सोचने में मदद करता है। ऐसी दूरदर्शी सोच अन्य उम्मीदवारों से आईएएस टॉपरों के उत्तर को अलग करती है क्योंकि इसमें छात्रों के बहुमत की तुलना में एक अनूठा समाधान होता हैं।

5. आत्मविश्वास और आत्म-सौष्ठव

जैसा कि गांधीजी ने कहा है कि 'ज्ञान ही शक्ति है', अगर हर छात्र सीखता रहता है तो उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। आईएएस टॉपरों के पास एक मजबूत विश्वास प्रणाली है जो उनके आईएएस की तैयारी में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए निरंतर प्रेरणा शक्ति की तरह काम करती है। सभी आईएएस उम्मीदवारों को भी अपने आईएएस सिलेबस को समय में पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए ताकि संशोधन के लिए उनके पास पर्याप्त समय शेष हो।

6. स्पष्ट लक्ष्य और संगठनात्मक कौशल

आईएएस टॉपर्स हमेशा जीवन के रास्ते में एक परिप्रेक्ष्य रखते हैं। वे जानते हैं कि मन में स्पष्टता आईएएस परीक्षा लिखने के दौरान बहुत महत्वपूर्ण है जो परीक्षा की प्रक्रिया में स्पष्टता को दर्शाता है। लक्ष्य, चाहे अल्पावधि या दीर्घकालिक, स्पष्ट होना चाहिए क्योंकि योजनाबद्ध लक्ष्य आईएएस टॉपरों को उनकी योग्यता के अनुसार अपनी पढ़ाई आयोजित करने में सहायता करता हैं। अध्ययन सामग्री को व्यवस्थित तरीके से पूरा किया जा सकता है और अगर आईएएस उम्मीदवारों ने आईएएस परीक्षा में परिप्रेक्ष्य प्राप्त किया हो तो सफलता प्राप्त की जा सकती है।

7. काम के लिए सम्मान

'कार्य पूजा है' यह वाक्य वास्तव में एक आईएएस टॉपर पर लागू होता है। वह हमेशा यह महसूस करता है कि कार्य शब्द परिस्थितियों के लिए व्यक्ति-परक हैं जैसे जब वे आईएएस उम्मीदवार हैं, उनका काम अध्ययन करना है और जब वे आईएएस अधिकारी बन जाते हैं, तो उनका काम एक अच्छा प्रशासक बनना होता है। इसी तरह वह अपने काम का सम्मान करते है; वे ईमानदारी से समय-समय पर आने वाली समस्याओं को हल करने में प्राप्त ज्ञान को लागू करने की कोशिश करते हैं।

8. आत्म निरीक्षण

आईएएस टॉपरों को एहसास है कि कोई भी जीवन में परिपूर्ण नहीं हो सकता है और हर किसी की आईएएस तैयारी में सुधार के लिए जगह है ताकि वे अपने शिक्षण का समीक्षात्मक विश्लेषण करके अपनी रणनीति में सुधार कर सकें। आईएएस टॉपरों को पता है कि परीक्षा में किस तरह की जरूरत है आत्मनिरीक्षण सिर्फ एक नैतिक अभ्यास नहीं है; यह जीने के प्रत्येक चरण में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा सकता है (एक छात्र के रूप में भी)।

अंजलि देशमुख की फेसबुक वॉल से साभार

जीवन एक संघर्ष

गिद्ध की प्रजाति का एक पक्षी है, नाम भूल रहा हूं। वह अंडे देने के लिए किसी ऊंचे पर्वत की चोटी पर चला जाता है। जोड़ा वहीं अंडे देता है, मादा ...